tek marathi

baliraja

बुधवार, 5 नवंबर 2008

gaarawaa

गारवा जीवाला हवा
सुखाचा एकमेव ठेवा [१]
दाहक वारे ग्रीष्मामधले
स्तब्ध करिती जीवन सारे
अशावेली तो झुळझुळणारा
देई झरा गारवा [1]
तनू तापते उष्ण हवेने
मनाही थकते अतिकामाने
अशावेळी ती झुळूक इवली
नष्ट करी शीनावा [२]
ग्रीष्म जाई मग हळुच सारोनी
मेघा दाटती नाभातुनी
हासता मग ते पानी शिम्पुनी
aअणतात गारवा [३]पुढे पहा )

gaarawaa

कधी हवा ती कुंद रहाते
जीवन त्याने मग कोंदतते
अशावेळी कुणी मधुररवाने
आनी पहा गारवा[४]
नैराश्याने पुरे ग्रासुनी
कुणी जातसे हताश होवूनी
अशावेळी तो सहानुभूतीचा
शब्द थारे गारवा[५]

शुक्रवार, 31 अक्तूबर 2008

स्क्रिप्ट बदलानेमे मुश्किल (पोवाडा)

एक सोनियाचे घर,त्याचे प्लातिनामाचे माजघर
त्यात रत्नाजदीता मखर
जिथे राही पंतप्रधान तेज त्याचे प्रखर हो जी जी जी
त्या हाती देशाची किल्ली
लोक म्हणती त्यास दिल्ली
जिथे आली स्त्रीशक्ति पहिली
उडविली लोकशाहीची खिल्ली!हो जी जी जी
तिच्या वंशी कशी चिकतली
हाती घेऊ पाहि किल्ली
एक दिनी एक इटली
पूरी देशाची वात लागली!हो जी जी जी
तुम्ही ऐअकता काया जणू बघे
टी राष्ट्राला गीलाया बघे
चला उठा जिम्काया किल्ले
लोनी सेवकांचे बिल्ले!हो जी जी जी

बुधवार, 29 अक्तूबर 2008

swaabhimaan he paap naahee

yuddhaawarlayaa kShiteejaawarale maavaLe taare
wamshaj tyaamche paLapute taree mirawatee kShaatrateja saare
shirakamaalaa haatee gheoonee shatrumshee laDhaNare
jaaoonee tyaanchyaa jagee aale kShaNokShaNee raDaNaare.
eka koNee parakaa yeoonee pistoola paraje yethe
sharaNa yeNya tayaar hoeenaa,daraDaawe ulaTe
tyaachyaakarawee aagaLeeka hotaaa yogya techa jhaale
naagarimche rakSharaNa karaNyaa tyaalaa jhopawile
chowkashee karaNe kama ase rajya sarakaarache
pararajyaatoona hullaDa karuni bighaDawitee saache
poorNa maahitee miLaNyaapoorwee poorNeche paanEE kaauchambaLe
biharee mhaNunee anyaayaachee khotee orada baLe
eka tyamadhye deshaamchyaa pramukha mantrimamDaLee
deshaachaa kaarabhaara sopalaa jyamwar lokaamnee
ekasanghtaa bhaarataachee moDalee asel jara kaa kuNee
tara tee tumhee naShtacharaamnee,na aamheee asoo jaree swaabhimanee

रविवार, 5 अक्तूबर 2008

विनायक दामोदर सावरकर

शिक्षण घेनया अनेक हिन्दी विलायतेस गेले
अनेकजन त्यापैकी परी मात्रुप्रेमास मुकले
एक असा विनायक त्यापैकी ,जे देशप्रेमी ठरले
रास्त्राला समर्थ करण्यासाठी कतीबध्ध जाहले।
क्रांतीज्योत पेताविन्या पुस्ताकातूनी पिस्तूल पाठविले
धूर्त आशा आन्ग्लांच्या नजरेतुनी नाच सुतले।
शिक्षा काल्या पाण्याची झाली ,कष्ट किती भोगले
शरीर जर्जर झाले तरी मन दुबले नाच झाले।
युद्ध सुरु होता तरुनास भारती होंय सुचविले
भारत उद्याचा समर्थ व्हावा या एकाच उद्दिश्ताने।
शिक्षा सम्पुनी घरी परतता स्वस्थ नाही बसवले
पतित पवन मन्दिर बांधले,जातिभेद मित्विले
राजकारानाची दुष्ट खेली अशी,क्षण एक राष्ट्र तया विसरिले
राष्ट्रप्रेम तरीही त्यांचे मुली न ओसराले
आज तयांच्या पुण्यतिथी ला पुन्हा समारू त्यांनाdivyad
दिव्य भव्य त्या राष्ट्रभाक्तीला देऊ मानवंदना।
कृष्णकुमार प्रधान